Wednesday, 30 September 2015


सुगंधा को विश्वास नहीं हो रहा था कि ये वही अमित था.
बात उन दिनों की है जब वो कॉलेज में पढ़ती थी. अमित और सुगंधा एक ही क्लास में थे. पूरे तीन साल उनका अफेयर चला और उन्होंने एक साथ ज़िन्दगी बिताने की कसमें खा ली थीं. जब कॉलेज खत्म हुआ तो फेयरवेल के दिन दोनों गुमसुम से एक कोने में बैठे थे. अमित को पढ़ने के लिए बहार जाना था और सुगंधा के लिए उसके मम्मी-पापा ने लड़कों की भरमार लगनी शुरू कर दी थी. वो बहुत परेशान थी. और वो मम्मी-पापा को ज़्यादा दिन रोक नहीं सकती थी. लेकिन अमित भी मजबूर था. वो इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहता था. घर बसाने के लिए बहुत सोचना पड़ता है, बहुत जोड़ना पड़ता है.
सुगंधा ने कहा, "देखो, मैं कल रेलवे स्टेशन पे तुम्हारा इंतज़ार करूंगी. चाहे जो भी हो, जैसे भी हो, हम एक साथ रह लेंगे. तुम जहां भी जाओगे, मैं तुम्हारे साथ चलूंगी. प्लीज!"
अमित ने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुरा कर हामी भर दी.
"तो आओगे न कल? साढ़े नौ बजे?"
"हां!" अमित ने धीमी आवाज़ में बोला.
बस वो दिन है और आज का दिन है. न अमित आया, न उसने कोई ख़बर दी.
इतने सालों बाद अचानक ऐसा क्या हुआ जो वो फिर से उसकी ज़िन्दगी में आ गया?
आज सुगंधा एक कंपनी की जनरल मैनेजर है. उसके पास सब कुछ है. वो अपने पैरों पर खड़ी है. लेकिन वो लौट कर अपने घर नहीं गयी. और न ही उसने किसी की मदद ली.
कुछ ही देर में जैसे कई पिछले साल उसकी आंखों के सामने फिर से गुज़र गये.
उसने अपने आप को सम्हाला और तैयार हो गयी वो, अमित से मिलने के लिए.
उसने The Coffee Shop का दरवाज़ा खोला, और बैठ गयी. शायद वो पहले ही आ गयी थी. उसे पता था, यहां उसे ज़्यादा देर नहीं लगेगी.
दरवाज़ा फिर से खुला और अमित उसकी आंखों के सामने था.
कुछ पलों की ख़ामोशी, दोनों की आंखों में आंसू... लड़खड़ाई जुबां से अमित बोला "मैं कैसे तुमसे माफ़ी मांगूं, पता नहीं. लेकिन, ये ज़रूरी है. मैं उस दिन नहीं आ पाया, या ये कहो, आना नहीं चाहता था. मुझे अपना करियर प्यारा था. मैं sure नहीं था."
"I thought so... अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता." सुगंधा ने मुस्कुरा कर बोला.
"मैं खुश हूं, Now excuse me, I have to pick my child from school".
अमित ने हड़बड़ा के कहा, "ओह! तुमने शादी कर ली?"
"नहीं, तुम्हारा है!" सुगंधा बोली, और बस, चली गयी....

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